आंसू बेकरार है पर दर्द को पता नहीं बहे किसके लिए,
हर वक्त नही वो दूर कैसे कहें, करीब भी आए तो किसके लिए,
गिनतियों में दिन गुजरते गए, कभी ठहरा नही उस खास पल के लिए,
हर बात पर चार बातें हुई, खामोशी रह गई सुनने के लिए,
सभी को सुकून की चाहत है, पर आदत नहीं किसीको देने के लिए,
भरसक कोशिश रही लफ्जों से बात सम्हल जाए,
सवाल ये भी है हम मगरुर कितने हैं सम्हल जाने के लिए।
सभी के पास उम्र, ओहदा और हैसियत का सामान है तारीफ पाने के लिए,
हकीकत खुद हू बाकी तो सामान है कैद में बसर करने के लिए,
मेरा अदब मेरे लहजे में है, ये कोशिश रहेगी लफ्जों से दिल को छू जाने के लिए।